नई दिल्ली

One Nation One Election Bill Explained: वन नेशन वन इलेक्शन बिल में क्या-क्या, आ गया सामने; गिनाए वो कारण जिसके लिए जरूरी है एक देश एक चुनाव

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देश की संसद में सोमवार को वन देश वन इलेक्शन बिल आने वाला है। सरकार इस बिल को इसी सत्र में पेश कर पास करवाने की तैयारी में है।

New Delhi: देश की संसद में वन नेशन वन इलेक्शन विधेयक आने वाला है। सरकार इसकी पूरी तैयारी में है और इसी सत्र में बिल लाने की तैयारी में हैं। अब सवाल है कि वन नेशन वन इलेक्शन बिल में है क्या, इसके आने के बाद देश में क्या-क्या बदल जाएगा, क्यों एक देश एक चुनाव की जरूरत पड़ी। आइए समझते हैं।

एक देश एक चुनाव विधेयक के अंदर क्या-क्या

  1. ‘संविधान (129वां) संशोधन विधेयक, 2024’ में इस बात को रेखांकित किया गया है कि बार-बार चुनाव आचार संहिता लगाए जाने से विकास कार्यक्रमों में ठहराव पैदा हो जाता है।
  2. सरकारी सेवाओं के कामकाज पर भी असर पड़ता है और चुनावी ड्यूटी के लिए लंबे समय तक कर्मचारियों तैनाती के चलते सेवाओं में उनकी भागीदारी कम हो जाती है।
  3. इस विधेयक में एक नया अनुच्छेद 82ए सम्मिलित करने का प्रस्ताव है
  4. जिसके मुताबिक, लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव और अनुच्छेद 83 (संसद के सदनों की अवधि), अनुच्छेद 172 (राज्य विधानमंडलों की अवधि) और अनुच्छेद 327 में (विधानमंडलों के चुनाव के संबंध में प्रावधान करने की संसद की शक्ति) में संशोधन किया जाना है।
  5. विधेयक में यह भी प्रावधान है कि इसके अधिनियमित होने पर आम चुनाव के बाद लोकसभा की पहली बैठक की तारीख पर राष्ट्रपति द्वारा एक अधिसूचना जारी की जाएगी।
  6. अधिसूचना की उस तारीख को नियत तिथि कहा जाएगा।
  7. लोकसभा का कार्यकाल उस नियत तिथि से पांच वर्ष का होगा।
  8. नियत तिथि के बाद और लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल की समाप्ति से पहले विधान सभाओं के चुनावों द्वारा गठित सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल के खत्म होने पर समाप्त हो जाएगा।
  9. इसके अनुसार इसके बाद, लोकसभा और विधानसभाओं के सभी आम चुनाव एक साथ कराए जाएंगे।
  10. विधेयक में कहा गया है कि लोकसभा या विधानसभा के पूर्ण कार्यकाल से पहले भंग होने की स्थिति में वर्तमान कार्यकाल की शेष अवधि के लिए ही चुनाव होगा।

सोमवार को संसद में पेश होगा एक देश एक चुनाव विधेयक
एक देश, एक चुनाव से संबंधित संविधान (129वां संशोधन) विधेयक और केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक आगामी सोमवार को लोकसभा में पेश किए जाने के लिए सूचीबद्ध हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की अवधारणा के क्रियान्वयन के लिए संवैधानिक संशोधन विधेयक को 12 दिसंबर को मंजूरी दी थी।

कभी देश में होता था एक साथ चुनाव
आजादी के बाद देश में जब पहली बार सरकार बनी, देश और राज्य दोनों में, तब एक साथ ही चुनाव हुए थे, उसके बाद भी कई साल तक एक साथ चुनाव हुए, लेकिन बाद में स्थितियां बदलती गईं और अलग-अलग चुनाव होने लगें। लोकसभा और सभी राज्य विधान सभाओं के आम चुनाव वर्ष 1951-52, 1957, 1962 और 1967 में एक साथ हुए थे, हालांकि, 1968 और 1969 में कुछ विधान सभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण एक साथ चुनाव का क्रम टूट गया।

32 दल सपोर्ट में
एक देश, एक चुनाव’ पर अध्ययन करने वाली उच्च स्तरीय समिति का नेतृत्व करने वाले पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बताया कि ‘एक देश, एक चुनाव’ पर परामर्श प्रक्रिया के दौरान 32 राजनीतिक दलों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया जबकि 15 पार्टियों ने इस पर विरोध जताया। कोविंद ने पांच अक्टूबर को सातवें लाल बहादुर शास्त्री स्मारक व्याख्यान में एक साथ चुनाव पर कहा था कि इन 15 दलों में से कई ने अतीत में कभी न कभी एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव का समर्थन किया था।

किसने किया विरोध और किसने किया सपोर्ट
राष्ट्रीय दलों में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (आप), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने इस प्रस्ताव का विरोध किया जबकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने इसका समर्थन किया। राज्य की पार्टियों में एआईयूडीएफ, तृणमूल कांग्रेस (टीएमली), ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिममीन (एआईएमआईएम), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक), नागा पीपुल्स फ्रंट और सपा ने प्रस्ताव का विरोध किया। अखिल भारतीय द्रविड़ मुनेत्र कषगम (अन्नाद्रमुक), ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू), अपना दल (सोनी लाल), असम गण परिषद, बीजू जनता दल (बीजद), लोक जनशक्ति पार्टी (आर), मिजो नेशनल फ्रंट, नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी, शिवसेना, जनता दल (यूनाइटेड), सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा, शिरोमणि अकाली दल और यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल ने प्रस्ताव का समर्थन किया। भारत राष्ट्र समिति, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस, जनता दल (सेक्युलर), झारखंड मुक्ति मोर्चा, केरल कांग्रेस (एम), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा), राष्ट्रीय जनता दल (राजद), राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट, तेलुगु देशम पार्टी और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी सहित अन्य दलों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। अन्य दलों में भाकपा-मार्क्सवादी/ लेनिनवादी (माले) लिबरेशन, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया, राष्ट्रीय लोक जनता दल, भारतीय समाज पार्टी, गोरखा नेशनल लिबरल फ्रंट, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा, राष्ट्रीय लोक जन शक्ति पार्टी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजित पवार) विरोध करने वालों में शामिल थे।

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