Maharashtra Elections 2024: माहिम में आमने-सामने हैं तीन टुकड़ों में बंटी शिवसेना, बाला साहेब ठाकरे के किले का सूबेदार कौन बनेगा, जानिए
मुंबई में कई विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां शिवसेना के बंटे हुए धड़ों में आमने-सामने की लड़ाई है। मगर सबसे दिलचस्प मुकाबला माहिम दादर में है, जहां शिवसेना के बंटे हुए टुकड़े चुनावी मुकाबले में हैं। बाला साहेब ठाकरे ने दादर के शिवाजी पार्क के जरिये ही मुंबई को अपना राजनीतिक गढ़ बनाया था।
Mumbai: मुंबई का दादर माहिम इलाका, जहां के शिवाजी पार्क में बाला साहेब ठाकरे ने शिवसेना की नींव रखी। इस जगह से ही बाला साहेब दशकों तक दशहरे पर मुंबईकरों से संवाद करते रहे। दशहरा मैदान में ही बाला साहेब का स्मारक है। दादर में ही पार्टी मुख्यालय शिवसेना भवन है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में यह क्षेत्र शिवसेना के तीन टुकड़ों की लड़ाई का गवाह बन गया है। अब प्रतिष्ठित माहिम विधानसभा सीट से उद्धव सेना, शिंदे सेना और राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के उम्मीदवार ताल ठोंक रहे हैं।
बाल ठाकरे की उत्तराधिकार की लड़ाई
कई मायनों में दादर का चुनाव निर्णायक होने वाला है। मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने अपने बेटे अमित ठाकरे की पॉलिटिकल लॉन्चिंग के लिए माहिम दादर सीट को ही चुना है। पार्टी में टूट के बाद उद्धव सेना ने महेश सावंत पर दांव लगाया है, जो यूबीटी के शाखा प्रमुख रहे हैं । बगावत के बाद एकनाथ शिंदे भी अपना पहला चुनाव लड़ रहे हैं। उन्होंने ने इलाके के पुराने विधायक सदा सरवणकर पर फिर से भरोसा किया है। सदा सरवणकर तीन बार माहिम से जीत हासिल कर चुके हैं। कुल मिलाकर माहिम में मुकाबला बाला साहेब ठाकरे के उत्तराधिकारियों के बीच में हैं। तीनों उम्मीदवार की जड़ें कहीं न कहीं बाला साहेब ठाकरे की शिवसेना से जुड़ी हैं। अब माहिम के मराठा वोटर फैसला करेंगे कि बाला साहेब की विरासत का हकदार कौन है?
मराठा और मुस्लिम वोटर करेंगे माहिम का फैसला
शिवसेना में पहली टूट बाला साहेब के सामने ही हुई थी, जब उन्होंने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर राज ठाकरे के बजाय बेटे उद्धव को तरजीह दी। 2006 में राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बनाकर पार्टी में पहला विभाजन किया। पहले चुनाव में उन्हें 13 सीटों पर जीत मिली, मगर वह सफलता बरकरार नहीं रख पाए। फिर 2022 में एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद शिवसेना में दूसरी बार फूट पड़ी। अब बाला साहेब की शिवसेना तीन हिस्सों में बंटकर चुनावी मैदान में है। माहिम में मराठी वोटर जीत-हार का फैसला करते हैं। अगर मराठा वोट बंटा तो मुस्लिम वोटर निर्णायक साबित होंगे। अगर करीबी मुकाबला हुआ तो माहिम में रहने वाले गुजराती, राजस्थानी और उत्तर भारतीय वोटर ही नेताओं के भाग्य का फैसला करेंगे।
शिंदे के साथी सदा सरवणकर की राह नहीं है आसान
माहिम के वोटर भी तीन उम्मीदवारों के बीच बंटे नजर आ रहे हैं। कुछ लोग सदा सरवणकर को जमीन पर काम करने वाले नेता मानते हैं तो कई उन्हें धोखेबाज भी मानते हैं। प्रभादेवी में फूल बेचने वाली संगीता कदम शिंदे सेना की सरवणकर को ही पसंद करती हैं क्योंकि उन्होंने इलाके में जल संकट और गटर की समस्या को दूर करा दिया। रहेजा अस्पताल में काम करने वाले सतीश पाटिल मानते हैं कि सरवणकर ने बालासाहेब ठाकरे को धोखा दिया, इसलिए उन्हें माफ नहीं किया जा सकता है। माहिम कोलीवाड़ा में मछली बेचने वाले भी सदा सरवणकर से नाराज हैं, क्योंकि उन्होंने उनके स्टॉल हटवा दिए थे।
उद्धव के महेश सावंत को मुस्लिम वोटरों से उम्मीद
उद्धव सेना के महेश सावंत माहिम दादर में लंबे समय से एक्टिव हैं। वह शिवसेना में टिकट के दावेदार रहे। अब पार्टी में टूट के बाद उन्हें चुनाव लड़ने का मौका मिला है। उन्हें मुस्लिम और कांग्रेस वोटरों के समर्थन की उम्मीद है। 2019 के चुनावों में कांग्रेस को माहिम से 15,000 से अधिक वोट मिले थे। माहिम के मच्छीमार कॉलोनी के कारोबारी संदेश किनी प्रत्याशी महेश सावंत के प्रशंसकों में हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में उन्होंने बताया कि जब कोई समस्या होती है तो सावंत सबसे पहले पहुंचते हैं। उन्होंने कोविड महामारी के दौरान लोगों को अस्पताल में बिस्तर दिलाने में मदद की थी।
बीजेपी के गुप्त समर्थन और पापा की छवि के सहारे हैं अमित
राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे को लोग पसंद तो कर रहे हैं मगर उन्हें सीटिंग एमएलए और क्षेत्र में स्थापित राजनेता से चुनौती मिल रही है। उन्हें अपने पिता की छवि और बीजेपी के परोक्ष समर्थन से जीत की उम्मीद है। माहिम से 2009 में मनसे नेता नितिन सरदेसाई ने जीत हासिल की थी। इलाके में पार्टी के पुराने वोटर भी हैं। दादर के रानाडे रोड की रहने वाली मालती पुरंदरे का कहना है कि लोग उसी को वोट देंगे, जिन्होंने क्षेत्र में कुछ न कुछ काम किया है। हालांकि प्रभादेवी के सिल्वर अपार्टमेंट की वैष्णवी कुकरेतकर कहती हैं कि ठाकरे को यहां से जीतना चाहिए। राजनीति में नए युवा को वोट देना भी बेहतर है। कुछ मनसे समर्थक मानते हैं कि माहिम में नौसिखिए चुनाव हारते रहे हैं, इसलिए मनसे को एक बार फिर नितिन सरदेसाई पर दांव लगाना चाहिए था।