मुंबई

Maharashtra Elections: नतीजों बाद गोलबंदी? महाराष्ट्र में मतदान कल

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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव प्रचार थम गया। 288 सीटों के लिए मतदान हुआ। इस बार का चुनाव कई मायनों में खास रहा। राजनीतिक उलटफेर के बाद नए समीकरण बने। हर सीट पर बहुकोणीय मुकाबला देखने को मिला। कोई एक मुद्दा प्रभावी नहीं रहा। भाजपा के चुनावी नारों पर भी सहमति नहीं बन पाई।

Mumbai: महाराष्ट्र की सभी 288 विधानसभा सीटों पर चुनाव प्रचार सोमवार शाम को थम गया। झारखंड में दूसरे चरण के तहत 38 विधानसभा सीटों पर मतदान भी 20 नवंबर को ही होने हैं, लेकिन कई वजहों से महाराष्ट्र की चुनावी लड़ाई को इस बार बेहद खास माना जा रहा है।

विकल्पों की झड़ी
देश के समृद्ध और विकसित राज्यों में गिने जाने वाले महाराष्ट्र में सत्ता की कमान किसके हाथों में आती है, इस पर यूं भी सबकी नजरें टिकी रहती थीं, लेकिन इस बार बात सिर्फ इतनी ही नहीं है। साल 2019 में विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद जिस तरह की उखाड़-पछाड़ महाराष्ट्र की राजनीति में दिखी, उसने न सिर्फ प्रदेश के प्रमुख राजनीतिक दलों का स्वरूप बदल दिया और प्रमुख राजनीतिक परिवारों की साख पर सवाल खड़ा कर दिया बल्कि राज्य के आम मतदाताओं के सामने भी विकल्पों की झड़ी लगा दी।

प्रत्याशियों का घालमेल
इसका असर न केवल इन चुनावों में उठ रहे मुद्दों पर बल्कि इसे उठाने के तरीकों पर भी दिख रहा है। चुनावी लड़ाई का स्वरूप इस मायने में भी बदला है कि लगभग हर विधानसभा क्षेत्र में बहुकोणीय मुकाबला हो गया है। दो शिवसेना और दो NCP के साथ ही कांग्रेस और BJP के अधिकृत प्रत्याशी तो तय सीटों पर हैं ही, इन दलों के बागी प्रत्याशी भी कई जगहों पर मुकाबले को कठिन बना रहे हैं। कौन किस तरफ से किसके वोटों में कितनी सेंध लगाने वाला है, इसे लेकर हर खेमे में अनिश्चय और उलझन की स्थिति बनी हुई है।

कोई प्रदेशव्यापी मुद्दा नहीं
इस बार कोई भी ऐसा एक मुद्दा नहीं है, जिसके बारे में यह माना जा सके कि यह पूरे राज्य में सभी विधानसभा सीटों पर प्रभावी है। इस वजह से नारों को लेकर भी संदेह और असमंजस की स्थिति दिख रही है। BJP की तरफ से ‘बटेंगे तो कटेंगे’ और ‘एक हैं तो सेफ हैं’ नारों को सबसे ज्यादा प्रमुखता दी गई, लेकिन खुद NDA खेमे में भी इस पर सर्वसम्मति नहीं बन सकी। अजित पवार ही नहीं, BJP के भी कई नेताओं ने इस नारे को अस्वीकार करने की बात कह दी।

चुनाव बाद की रस्साकशी
महाविकास आघाड़ी को इतना क्रेडिट जरूर दिया जा सकता है कि उसकी तरफ से महाराष्ट्र की अस्मिता को मूल मुद्दा बनाने की कोशिश में काफी हद तक एकरूपता दिखी है, लेकिन उसे इसमें कितनी सफलता मिली है, यह चुनाव नतीजों से ही पता चलेगा। सबसे बड़ी बात यह कि नतीजों से भी इस चुनावी रस्साकशी का अंत हो जाएगा, ऐसा निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता। कई जानकारों के मुताबिक नतीजे आने के ठीक बाद राजनीतिक गोलबंदी का एक और दौर देखने को मिल सकता है।

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