महाराष्ट्र राजनीति

Maharashtra Election: 25 साल में सात मुख्यमंत्री, सिर्फ देवेंद्र फडणवीस कार्यकाल पूरा कर सके, ऐसे बदली राज्य की सियासत

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बीते पांच साल में महाराष्ट्र ने तीन-तीन मुख्यमंत्रियों की सरकारें देखी है। वहीं बीते 25 साल में राज्य की सत्ता सात मुख्यमंत्रियों के हाथों में रही। भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस के नाम पिछले 47 वर्षों में पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा करने वाले महाराष्ट्र के पहले मुख्यमंत्री बनने का रिकार्ड दर्ज है। 

Maharashtra: महाराष्ट्र में चुनावी सरगर्मी बढ़ती जा रही है। महाराष्ट्र में एक चरण में विधानसभा चुनाव होना है। यहां 20 नवंबर को मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे। नतीजे 23 नवंबर को आएंगे। इससे पहले तमाम पार्टियां चुनावी परीक्षा में जाने वाले अपने चेहरे घोषित कर रही हैं। दोनों प्रमुख गठबंधनों महायुति और महाविकास अघाड़ी ने अधिकतर सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं।

2019 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद राज्य की राजनीति में बहुत कुछ बदल चुका है। 2019 में साथ मिलकर चुनाव लड़ीं भाजपा और शिवसेना को नतीजों में बहुमत मिला, लेकिन मुख्यमंत्री के मुद्दे पर दोनों दलों का गठबंधन टूट गया। महाराष्ट्र ने बीते पांच साल में दो प्रमुख पार्टियों में बगावत के साथ-साथ तीन मुख्यमंत्री भी देखे हैं। आइये जानते हैं कि महाराष्ट्र में बीते पांच विधानसभा चुनावों का हाल कैसा रहा है? कब किस दल या गठबंधन को बहुमत मिला? इस दौरान किस दल के खाते में कितने प्रतिशत वोट आए? पिछले चुनाव में क्या हुआ था? 2019 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद राज्य की राजनीति में कितनी बदली?

1999 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में क्या हुआ था?
महाराष्ट्र के बीते पांच विधानसभा चुनावों की बात करें तो 1999 में किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। 288 में से 75 सीटें जीतकर साथ कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी, जिसे 27.20% वोट मिले। कांग्रेस से अलग हुए समूह शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) ने 22.60% वोट के साथ 58 सीटें हासिल कीं। उधर सत्तारूढ़ शिवसेना-भाजपा गठबंधन 125 सीटें जीतीं। शिवसेना ने 69 सीटें जीतीं और उसे 17.33% वोट मिले। वहीं भाजपा ने 14.54% मत के साथ 56 सीटें जीतीं।

चुनाव नतीजों के बाद बारी थी सरकार बनाने की। इसके लिए कांग्रेस और एनसीपी साथ आए और गठबंधन कर सरकार बनाने का दावा पेश किया। अक्तूबर 1999 में कांग्रेस के विलासराव देशमुख मुख्यमंत्री बने और एनसीपी के छगन भुजबल को उपमुख्यमंत्री की कुर्सी मिली। हालांकि, विलासराव देखमुख अपना पांच साल का कार्यकाल नहीं पूरा कर पाए। कांग्रेस ने उन्हें हटाकर 17 जनवरी 2003 में सुशील कुमार शिंदे को मुख्यमंत्री बना दिया।

2004 में विलासराव मुख्यमंत्री बने, मुंबई हमलों के बाद इस्तीफा 
महाराष्ट्र विधानसभा के लिए अगले चुनाव 2004 में हुए। जब नतीजे सामने आए तो एनसीपी 71 सीटों (18.75% वोट) के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, जबकि इसकी सहयोगी कांग्रेस 69 सीटों (21.06%) के साथ दूसरे स्थान पर रही। वहीं भाजपा-शिवसेना गठबंधन क्रमशः 54 और 62 सीटें जीता। इस चुनाव में भाजपा के खाते में 13.67% वोट जबकि और शिवसेना को 19.97% मत हासिल हुए थे। 

चुनाव नतीजों के बाद एक बार फिर विलासराव देशमुख राज्य के मुख्यमंत्री बने। उनकी कैबिनेट में एनसीपी नेता आरआर पाटिल को उपमुख्यमंत्री बनाया गया। एक बार फिर विलासराव अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। नवंबर 2008 के मुंबई हमलों के बाद देशमुख और उनके डिप्टी राज्य के गृह मंत्री आर.आर. पाटिल को इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद महाराष्ट्र के दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री शंकरराव चव्हाण के बेटे अशोक चव्हाण को राज्य की सत्ता मिली।

आदर्श हाउसिंग घोटाले के चलते अशोक चव्हाण का इस्तीफा 
2009 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 82 सीटों (21.01% वोट) के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। कांग्रेस की सहयोगी एनसीपी 62 सीटों (16.37%) के साथ दूसरे स्थान पर रही। भाजपा को 46 सीटें (14.02% वोट) मिलीं, जबकि उसकी सहयोगी शिवसेना के खाते में 44 सीटें (16.26%) गईं। इसके अलावा, शिवसेना से अलग हुए गुट महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना को 13 सीटें मिलीं।

चुनाव नतीजों के बाद मौजूदा मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को ही राज्य की सत्ता मिली। हालांकि, एक बार फिर मुख्यमंत्री का पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं हुआ। आदर्श हाउसिंग घोटाले के चलते अशोक चव्हाण ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद कांग्रेस ने एक टेक्नोक्रेट पृथ्वीराज चव्हाण को महाराष्ट्र की शीर्ष सत्ता दी।

देवेंद्र फडणवीस ने सरकार में बनाए कई रिकार्ड
अब आता है 2014 का महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव। इसमें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। भाजपा को 27.81% मत के साथ सबसे ज्यादा 122 सीटें आईं। इसके बाद शिवसेना ने 63 सीटें और 19.35% मत हासिल किए। 42 सीटें जीतकर कांग्रेस तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी और उसे 17.95%वोट मिले। एनसीपी के 41 उम्मीदवार जीते और उसे 17.24% वोट आए।

चुनाव नतीजों के बाद भाजपा और शिवसेना साथ मिलकर सरकार बनाने पर सहमत हुए। इस सरकार में भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस को राज्य के मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी दी गई। महाराष्ट्र की सत्ता के शीर्ष में पहुंचते ही देवेंद्र फडणवीस के नाम कई रिकॉर्ड जुड़े। वह 44 वर्ष की आयु में मुख्यमंत्री बने, जिससे वह शरद पवार के बाद महाराष्ट्र के इतिहास में दूसरे सबसे युवा मुख्यमंत्री बन गए। इसके बाद फडणवीस के नाम पिछले 47 वर्षों में पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा करने वाले महाराष्ट्र के पहले मुख्यमंत्री बनने का रिकार्ड दर्ज हुआ और महाराष्ट्र के इतिहास में केवल दूसरे मुख्यमंत्री हैं।

पिछले विधानसभा चुनाव में क्या हुआ?
राज्य में 2019 के विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला दो प्रमुख गठबंधनों के बीच था। पहला भाजपा और शिवसेना का गठबंधन, जिसकी उस वक्त सरकार थी। वहीं, विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस और एनसीपी शामिल थे। महाराष्ट्र में 288 सदस्यीय विधानसभा के लिए 21 अक्तूबर, 2019 को वोट डाले गए। 24 अक्तूबर, 2019 को मतगणना कराई गई थी। जब नतीजे आए तो 288 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा को सबसे ज्यादा 105 सीटें (25.75% वोट) मिलीं। वहीं, भाजपा की सहयोगी पार्टी शिवसेना को 56 सीटें (16.41% वोट) आई थीं। इस तरह इस गठबंधन को कुल 161  सीटें मिलीं, जो बहुमत के आंकड़े 145 से काफी ज्यादा था। दूसरी ओर एनसीपी को 54 सीटें (16.71% वोट) जबकि उसकी सहयोगी कांग्रेस को 44 सीटें (15.87% वोट) मिलीं।

फडणवीस की चंद दिनों की सरकार से शिंदे-अजित की बगावत तक
2019 में साथ मिलकर चुनाव लड़ीं भाजपा और शिवसेना को नतीजों में बहुमत मिला, लेकिन मुख्यमंत्री के मुद्दे पर दोनों दलों का गठबंधन टूट गया। इसके बाद राज्य में कई राजनीतिक उठापटक हुई। चुनाव नतीजों के बाद बीते पांच साल में राज्य ने तीन अलग-अलग गठबंधनों की सरकारें देखी जिसका नेतृत्व क्रमशः उद्धव ठाकरे, देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे ने किया। कभी सुबह का सूरज उगने से पहले देवेंद्र फडणवीस सरकार का शपथ ग्रहण हुआ तो कभी महाविकास अगाड़ी सरकार में शामिल सबसे बड़े दल शिवसेना में टूट के बाद नई सरकार बनी। कभी शिवसेना में बगावत हुई तो कभी शरद पवार के एनसीपी में बगावत हुई। इन पांच वर्षों में राज्य के सभी प्रमुख दलों ने सत्ता का सुख भोगा। राज्य में बड़े राजनीतिक दलों की संख्या भी चार से बढ़कर छह हो गई। इस पांच साल की उठापटक के बाद पार्टियां फिर जनता के सामने जा रही हैं लेकिन 23 नवंबर ही तय करेगा कि जनता की अदालत किसके पक्ष में अपना फैसला सुनाती है।

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